कइसे गावंव सखी रे मन गीत,
अनबोलना होगे हे सावंरिया।
मोहना मयारू बर लिपे पोते अंगना।
लांघन भुखन जोहे करधनिया कंगना।
कलपथे ककनी बनुरिया,
अनबोलना होगे हे सावंरिया।
बोले न बताये पैरी बैरी होगे बिछिया।
तरस तरस जाये झुमका देथे खिसिया।
हालय न डोलय नथनिया,
अनबोलना होगे हे सावंरिया।
महर महके खोपा के खोंचे दौनापान।
अइलावत जोहे अबले झन हो हिनमान।
किरिया हे मोला करिया,
अनबोलना होगे हे सावंरिया।
रूख राई जंगल झाड़ी पुछथे उदास।
सुरता संसो म तरिया मरथे पीयास।
झुखागे नरवा झिरिया,
अनबोलना होगे हे सावंरिया।
लुगा के आंछी म अइसे गठिया लेतेंव।
मनभर धनी संग मोर बतिया लेतेंव।
नई चाही महल अटरिया,
अनबोलना होगे हे सावंरिया।
गीतकार
एमन दास मानिकपुरी
औंरी, भिलाई 3, दुरूग
मो.7828953811
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