जिहां के माटी चंदन बंदन,
पसरे सबो के परान रे।
चोरहा लबरा तक बर ठिहा,
राज करय बेइमान रे।
पसरे सबो के परान रे।
चोरहा लबरा तक बर ठिहा,
राज करय बेइमान रे।
जिहां बैरी मन भी सुख पाथे,
पाथे दया मया दान रे।
भिखमंगा बर ठउर सुख के,
इहां आके होथे धनवान रे।
पाथे दया मया दान रे।
भिखमंगा बर ठउर सुख के,
इहां आके होथे धनवान रे।
जिहां के मनखे सिधवा सधवा,
मरे न छूटय इमान रे।
सपना म सुख सोचय नहीं,
कइसे गढ़े हे भगवान रे।
मरे न छूटय इमान रे।
सपना म सुख सोचय नहीं,
कइसे गढ़े हे भगवान रे।
जिहां मया बर मित मितान,
पिरित बर मिठ जुबान रे।
तिरथ बरत कस बोली भाखा,
तरजाए सुनैया कान रे।
पिरित बर मिठ जुबान रे।
तिरथ बरत कस बोली भाखा,
तरजाए सुनैया कान रे।
जिहां खार—खार गुंजय ददरिया ,
बारी डोली करमा के तान रे।
पड़की के थपकी म मन बोथाये,
रतिहा लागय दिनमान रे।
बारी डोली करमा के तान रे।
पड़की के थपकी म मन बोथाये,
रतिहा लागय दिनमान रे।
—एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'
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