लिम चौंरा बइठे गजामुंग,
चुंदी झुखोलेबे घाम म।
रमसिला, सुसिला, सुकवारो, मिलापा,
कजरेली कमला बिमला लकर्री झलापा।
टिकली लेबे लाली कारी घरी काजर,
चुंदी चट घपटे घन अंधियारी बादर।
लाहर बटोर तोर मया लहरबुंदिया।
देखे बिन गउंकी नई आवे निंदिया
ननपन के राधा, सखी मनभा दुलारी,
पुछती आबे कहूं उहू मन काली आही।
सपना के गोठ गोठियाबों मिलभांज।
सांवर सुरखस घलो आही माहूंर आंज।
रेवती ल कहि देबे रेंदही पारा भर म।
पहलीच ले चेता दिही दाई ल घर म।
रेसटिप फुगड़ी बिल्लस पित्तुल नंदागे हे।
तभो ले हिरदे म घनी मुंदी छा गे हे।
— एमन दास मानिकपुरी
औंरी, भिलाई—3, दुरूग।
मो. 7828953811
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