सुनके आई जबे संगी,
जीयरा हे मोर उदास ।।सुनके।।
मेरे चतुर्दिक छली व कपटी खड़े है,
लुटने धनजन लुटेरे भी अड़े हैं।
महाजनम अकारथ झन होय,
कबीर गीत ल गाथव।
इही जनम म काँटा बगरे,
अऊ जनम बर फुल चढ़ाथन।
मन मया के मरकी का करबे,
करम ला दोष लगाके।
मोरे जिनगी बिरथा होगे,
गीत म गीत सजाके।
परवस्ती म गोई ठिकाना बेठिकाना हे।
जान ले रे बैरी कभू आना कभू जाना हे।
अंतस के मैना रे मोर पड़की परेवना।
तही नइ्र चिन्हेस ते दूनिया के का कहना।
नजर मिलाके कहते हो,
भइगे मोरेच दिल में रहना।
ऐ छैला बाबू मय जान डारेव,
घाट घठौंदा के किरिया करार।।ऐ छैला।।
चलते चलते थक गई, अबतो सहारा देदे।
ऐ मेरे मेहबुब साहिल, एक बार किनारा देदे।
सुनती के गोठ संगी भरम लेथे जियरा।
हिरदे म हमा जा रे ऐ मोर हिरा।
पहाड़ी मय मैना, ते उत्ती के सुरूज।
बुले आबे पाटन येदे खाल्हे दूरूग।
खारा मिठा गुपचुप भेलवाही ठेला।
घुम लेतेन जोड़ी मोर मेला ठेला।
पड़री खुसियार ओखरा बतासा।
चना मुर्रा लड़ू ढेलवा तमासा।
भौजी तिरबेंगली पटपटही ननंदिया।
झटकुन लहुटबो देही मोला खिसिया।
मइके के मया होगेंव बेटी बदना।
ससुरे मयारू गोदे हवव गोदना।
का नाव लेबे रे करिया दवले मया मे।
तेरे खातिर हुई हूं कुरबां इस जहां में।
—एमन दास मानिकपुरी
औंरी, भिलाई—3, दूरूग वाले।
मो.7828953811
मो.7828953811
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