उस सर्द हवा की याद बहुंत आती है।
धुप भी ठिक है मगर, वो ज्यादा भाती हैै।।
नये मौसम को जाने क्या हो गया है।
जहां फूल थे कभी, अब कांटे चुभाती है।।
कोना कोना हौसला खोने लगा है अब।
जो कभी हंसाते थे अब रूलाती है।।
आलम इस कदर है इस आबो हवा का।
उस आबो हवा से फिर भी टकराती है।।
अचानक दिलरूबा बनजाता है बेहिचक।
पता नहीं चलता कब गले पड़ जाती है।।
—एमन दास
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें