गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

रसता

जरके जबर बैर भुंजागे।
लेसागे गरब गरू छाती।
समय समय के बात हे,
कभू दिन कभू राती।

राजनीत के ठुड़गा रूख,
रटहा सब डारा डारा।
जड़ पाना कस्सा करू,
फल फुल खारा खारा।

सुवारथ के टेड़गा रसता,
आंखी मुंद जेन चलही।
जिनगी जनम सब अकारथ,
सुक्खा राख धरही।

भेद भरम भभकउनी म,
हवा सही उड़ियाही।
लहसे लालच के नार तरी,
खड़े खड़े मड़ियाही।

चरदिनिया दुनिया के मेला,
चारेच दिन के बात।
नेता बन जीभर खाले,
कभू गारी कभू लात।

जात पात सब मटिया मेट,
जिनगी जनम सब हारे।
वाह रे कुर्सी तोर खेल,
का मोहिनी मुड़ डारे।

वोट अमीरी वोट गरीबी,
वोट सबन के संगवारी।
वोट परछी वोट छानही,
वोट बखरी अउ बारी।

खलक उजर के देखव,
जनम इही हे अनमोल।
लेखा जोखा सब खइता,
बने मुंह फटकार बोल।

फक्कड़ बर दू सवांगा,
चोंगी माखुर अउ बासी।
बइहा बर ससता सुख,
कभू हांसी कभू उदासी।

चेत करो झन रौंदो भाई,
देश के इज्जत गोड़तरिया।
सउंहत काल बइठे पाबे,
एको दिन तोर मुढ़सरिया।

मरना सहज भले हो सकथे,
फेर जीनगी हे हीरा सोना।
बखत रहत आंखी खोलव,
फोकट एला का खोना।

महाजनम मनुष तन पाके,
खुब रेंगे तय ह रद्दा।
भोग भाव म सुख खोजे,
चिकना खटिया अउ गद्दा।

रीस रांढ़ के गोठ बात,
मन म धरे बगियाये।
दुआ भेद बढ़ाके रे बैरी,
जुच्छा जनम गवाये।

तन पिंजरा के पंछी ल,
नै समझे अज्ञानी।
बाहर भितर अंधियारी म,
भटक मरे अभिमानी।

पुरखा के बात म बल हे,
नोहय फोकट कहिनी।
सत्य अहिंसा मारग मान,
सुनता सरग निसइनी।

हक बिरता बांट बिसारो,
झन बनौ बइमान।
हिनता मनता मानुष बर,
कांटा खुटी समान।

—एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'




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