शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

छत्तीसगढी़ के पहला कवि- धनी धरमदास साहेब जी - छत्तीसगढ़ विशेष

छत्तीसगढ़ विशेष -  लेखन व संकलन -एमन दास मानिकपुरी
-छत्तीसगढ़ के लोकभाषा अऊ राजभाषा छत्तीसगढी़ के प्रथम कवि संत जुढ़ावन (धनी धर्मदास जी साहेब) हरे। जेखर प्रमाण इतिहास अउ  शोध म पता चलथे। प्रकाशमुनी नाम साहेब जी उही वंश के पन्द्रहवां वंश गुरू आय।  अविभाजित छत्तीसगढ़ वर्तमान मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध बांधवगढ़ म जुढ़ावन जी ल स्वयं कबीर साहेब हा अटल 42 वंश के आशीर्वाद दिस अऊ प्रभावित होके धनी धर्मदास नाम से संबोधित करिन, कबीर साहेब के आशिर्वचन अनुसार छत्तीसगढ़ म ये परंपरा आज भी हे। जुड़ावन (धरमदास जी साहब) के धर्मपत्नी आमिन माता छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवयित्री हरे,  उंखर रचना आज भी चौंका आरती अऊ लोक गीत पंथी में सुने ल मिलथे।

-पं रविशंकर शुक्ल विद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष अऊ "संत धनी धरमदास कबीरपंथ के प्रवर्तक" नामक ग्रंथ के लेखिका जेन कबीरपंथ म पीएचडी करके छत्तीसगढ़ के मान बढ़ाने वाली 🌼डा. सत्यभामा आडिल के शोधप्रबंध ल पढ़ो।

क्रांतिकारी अऊ संत में जादा फरक नै होय, एक प्रकार से देखे जाए त संत क्रांतिकारी ही होता जेन अपन विचार अऊ ग्यान से क्रांति लाने। सकल संसार में कबीर साहेब से बड़े कोई क्रांतिकारी पैदा नै होय हे। क्रांति कैसे लाय जाथे ऐला कबीर से सीखना चाही आज ऐसे कोई जाति धरम नै हे जेमा कबीरपंथी नै होही ।
सैकड़ों सदी से कबीर पंथ के छत्तीसगढ़ मा प्रभाव हे।।
इंहा के लोक संस्कृति म कबीर अऊ कबीर पंथ के विचारधारा रचे बसे हे।
छत्तीसगढ़ अंचल के नाचा गम्मत  सुवा ददरिया कर्मा रहस पंथी पंडवाणी सबो लोक धरोहर कबीरपंथी दोहा साखी शबद रमैनी से पटे पढ़े हे।
कबीरधाम जिला प्राचीन काल से रिहिस अंग्रेज मन ल कबीरधाम केहे बर नै आत रिहिस त कबीरधा काहय ऊही धीरे धीरे बिगड़ के कवरधा होगे रिहिस।  नवा राज बने के बाद जब जोगी जी सरकार मा आइस तब पुराना जमाना  के रिकार्ड के आधार मा देख के नाम ल सुधारके साहेब के आशिर्वाद ले कबीरधाम करिस। 

-कबीर पंथ ल जाने बीना छत्तीसगढ़ ल समझ पाना कठिन हे, सिधवा सधवा छत्तीसगढ़ ऐसने नै बने हे ऐमा कबीर साहेब  जैसे सतपुरुष के बताय  रद्दा मा रेंगने वाला मन के सोच शामिल हे कबीरपंथी खूमान साव, कबीरपंथी लक्षमन मस्तुरिया, कबीरपंथी अमर दास, कबीरपंथी न्यायिइक दास झुमुक दास मन  के लहू बोहाय हे ऐ धरती म।

-कबीरपंथी विचारधारा हा छत्तीसगढ़ के रग रग मा रचे बसे एकर विरोध करने वाला छत्तीसगढ़ के रखवार नै हो सके।
कुछ मन झूठा छत्तीसगढ़िया विचारधारा के आढ़ म दारु मांस अऊ हिंसा के समर्थन करत हे।
हमर छत्तीसगढ़ महतारी दया मया पिरित के भुईंया हे। कबीरपंथी गीत इहां के लोक म समाय हे।
-हम तोरे संगवारी कबीरा हो
-अरे बीरना रे चोला तोर एक दिन होहेय बीरना
-दिन चारी मैहरवा में खेली लेतेव हो दिन
-हीरा गवां गयो कचरे में
-जाये के बेरा काम आही हो सुमरले सत्यनाम
ऐसन हमर पुरखा मन के कतको कबीरपंथी गीत छत्तीसगढ़ के आज धरोहर होगे हे।
कबीरपंथी समाज संसारिक साधन विहिन होकर भी खुश रहता है शांति और सहजता इनके सुलभ मानवीय गुणों में शुमार है,  ये एक ऐसा समाज है जो सदैव परहित की कामना करता हुआ दया भाव से सम्रीध् रहता है। जैविक समानता के भाव से ओतप्रोत कबीरपंथ ने सदैव एक पथ पर चलने की प्रेरणा दी है सत्य के पथ पर, साहेब के पथ पर। राजनीतिक चटूकारिता और स्वार्थ वश कोई राह भटक जाए तो भी उसकी सद्बुधी के लिए साहेब से प्रार्थना करते है-
 कबीर तेरी झोपड़ी, गल कटियन के पास।
 जो करेगा सो भरेगा तू क्यों होत उदास।।

धनी धर्मदास छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि के रूप में जाने जाथे। धनी धर्मदास साहब के रचनात्मक प्रभाव सबले जादा इहें हे-

‘‘अरजी भंवर बीच नइया हो,
साहेब पार लगा दे।

तन के नहुलिया सुरती के बलिया,
खेवनहार मतवलिया हो।

हमर मन पार उतरगे,
हमू हवन संग के जवईया हो।

माता पिता सुत तिरिया बंधु,
कोई नईये संग के जवईया हो।

धरमदास के अरज गोसांई,
आवागमन के मिटईया हो।

साहेब पार लगा दे।।‘‘

🌺धनी धर्मदास के रचना म भाव प्रधानता स्वयं झलकथे,  इंखर रचना के प्राणतत्व हे सत्यता यथार्थ मने कल्पनाशीलता से परे आत्म अनुभव सत्य ल उढेले के सफल प्रयास करे हे, धरमदास जी साहेब के छत्तीसगढ़ी बहुत उच्चकोटी के हे -
@सुवा@
पिंजरा तेरा झीना,
पढ़ ले रे सतनाम सुवा।

तोर काहे के पिंजरा,
काहे के लगे हे किंवाड़ी रे सुवा।

तोर माटी के पिंजरा,
कपट के लगे हे किंवाड़ी रे सुवा।

पिंजरा में बिलाई,
कैसे के नींद तोहे आवै रे सुवा।

तोर सकल कमाई,
साधु के संगति पाई रे सुवा।

धरमदास गारी गावै,
संतन के मन भाई रे सुवा।।‘‘

॥झूमर॥
कते हे दूर गुरु फुलवाड़ी,
हे गमक आवै केवड़ा के॥टेक॥

पाँच सखी मिली गेलौं फुलवाड़ी,
हे गमक आवै केवड़ा के॥1॥

इके हे हाथ फूल अलगावै,
हे गमक आवै केवड़ा के॥2॥

फुलवा जे लोढ़ि-लोढ़ि भरलौं चंगेरिया,
हे गमक आवै केवड़ा के॥3॥

संगहू के सखी सब दूर निकललै,
हे गमक आवै केवड़ा के॥4॥

आजू के बटिया लागै छै वियान,
हे गमक आवै केवड़ा के॥5॥

घोड़वा चढ़ल आवै सतगुरु साहब,
हे गमक आवै केवड़ा के॥6॥

धर्मदास यह अलख झूमरा गावै,
हे गमक आवै केवड़ा के॥7॥

लियहो गुरु शरण लगाय,
हे गमक आवै केवड़ा के॥8॥

छत्तीसगढ़ के परिपेक्छ में कहूं तो इसका भविष्य राजनीतिक स्वार्थ की शूली पर चढ़कर बूना जा रहा है। वर्ग विसंगतियों की आढ़ में चुनावी वोट को भूनाने के लिए सांस्कृतिक चोट पहुंचाने का सिलसिला शुरु हो गया है।
छोटे छोटे अबोध बच्चों को सार्वजनिक मांसाहार परोसने की तैयारी इसका प्रासंगिक उदाहरण है,  ऐसे में कोई संत आगे नहीं आएगा तो कौन बचाएगा?

संत प्रकाशमुनी नाम साहेब के इस पावण कदम में भी कुछ अवसरवादी तत्वों ने असभ्य राजनीति शुरु करने की चेष्ट की।
इसीलिए सद्गुरू कबीर साहेब ने कहा है---

तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे?

मैं कहता आंखन की देखी
तू कहता कागज की लेखी

मैं कहता सुलझावन हारो
तू राखे अरझाई रे
मैं कहता जागत रहियो
तू जाता है सोई रे

तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे?


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