गजल
(रचना दिनांक 03-09-2011)
कोई अपनी जिन्दगी, गजल किये बैठे हैं।
जाम -ए-मुहब्बत, मुददत से पिए बैठे हैं।।
गर किनारा मिले तो, साहिल से कहना।
मुसाफिर कोई बरसों से, कश्ती लिए बैठे हैं।।
ये सफर-ए-इश्क का, अंदाज-ए-बयाँ सुनो।
वो भूल गए जिनकी, यादो में जिए बैठे हैं।।
लाख मन्नतो पर भी, वो दिल दे न पाये।
बिन मांगे कोई यहाँ, जान दिए बैठे हैं।।
उस रात चाँद की, रौशनी क्या पढ़ी।
बहार-ए-चमन में, गुल खिले बैठे हैं।।
-एमन दास मानिकपुरी
anjorcg.blogspot.com
(रचना दिनांक 03-09-2011)
कोई अपनी जिन्दगी, गजल किये बैठे हैं।
जाम -ए-मुहब्बत, मुददत से पिए बैठे हैं।।
गर किनारा मिले तो, साहिल से कहना।
मुसाफिर कोई बरसों से, कश्ती लिए बैठे हैं।।
ये सफर-ए-इश्क का, अंदाज-ए-बयाँ सुनो।
वो भूल गए जिनकी, यादो में जिए बैठे हैं।।
लाख मन्नतो पर भी, वो दिल दे न पाये।
बिन मांगे कोई यहाँ, जान दिए बैठे हैं।।
उस रात चाँद की, रौशनी क्या पढ़ी।
बहार-ए-चमन में, गुल खिले बैठे हैं।।
-एमन दास मानिकपुरी
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