'सोहर'
बिना तेल बिना बाती,
जरत हव दिन राती,
मन हे मोर उदासी हो!
सुवना बैरी रे उमरिया बदमाश,
के बछर दिन चार हो!
जरत हव दिन राती,
मन हे मोर उदासी हो!
सुवना बैरी रे उमरिया बदमाश,
के बछर दिन चार हो!
कब आही रे लेनहार,
हिरदे हवय अंधियार,
सुन्ना अंगना घर द्वार हो!
सुवना बैरी रे उमरिया बदमाश,
के बछर दिन चार हो!
हिरदे हवय अंधियार,
सुन्ना अंगना घर द्वार हो!
सुवना बैरी रे उमरिया बदमाश,
के बछर दिन चार हो!
धनी बसे मोर दूरिहा,
ननपन के किरिया,
तिरिया के पिरिया हो!
सुवना बैरी रे उमरिया बदमाश,
के बछर दिन चार हो!
ननपन के किरिया,
तिरिया के पिरिया हो!
सुवना बैरी रे उमरिया बदमाश,
के बछर दिन चार हो!
गीतकार-
एमन दास मानिकपुरी
anjorcg.blogspot.com
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