सोमवार, 18 नवंबर 2019

हो रे मास, अघहन मास!

हो रे मास, 
अघहन मास!

जाड़ धर के आथस,
बिकट सोर मचाथस।
कोइ ल चुलकाथस,
कोइ ल कुलकाथस। 

महर महर धनिया,
महके खार—खार म।
सरर सरर पुरवइया,
डोंगरी पहार म।

जुड़ जुड़ नरवा तरिया,
हाथ गोड़ ठुनठुनी धरे।
जुड़ जुड़ कोठा कुरिया,
लंघियावत बस्ती सोवा परे।

मुंह डहर भगभग ले,
कुहरा ओगरत हे।
येदे चटकत हे गाल,
अउ होठ ओदरत हे।

गरम गरम फरा,
अउ चाउंर के चीला।
बंगाला के चटनी,
झड़कत हे मइपिला।

दूरिहा ले रेंग गोइ,
झन जोर तय बैंहा।
जुड़ेच जुड़ लागे,
रूख—रइ के छैंहा।

लजा के चंदा
चंदैनी खुसरत हे
जुड़ जड़काला म
सूरूज ठुठरत हे

गीतकार—
एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'
ग्राम व पोस्ट— औंरी,
तहसील— पाटन
जिला— दुर्ग, छ.ग.



















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