सियासत की बोली में,
वो सयानापन कहाँ हैं।
राजनीति की गली में,
अब अपनापन कहाँ हैं।
न हिंदू हूं न मुसलमां,
न सीख हूं न ईसाई।
मैं आदमी हूं मेरा यहाँ,
हम वतन कहाँ हैं।
जीना छोड़ दिया हूं,
बुरा नशा समझकर।
कब से मरे पड़ा हूं,
मेरा कफन कहाँ हैं।
स्वारथ की पुड़िया में,
सब कुछ बिकता है।
अधिकार के नाम से,
देखो हनन कहाँ है।
हर शाख उल्लुओं का
बसेरा यहाँ वहाँ है
जलते गुलचमन में
अब अमन कहाँ है।
-एमन दास मानिकपुरी
anjorcg.blogspot.com
वो सयानापन कहाँ हैं।
राजनीति की गली में,
अब अपनापन कहाँ हैं।
न हिंदू हूं न मुसलमां,
न सीख हूं न ईसाई।
मैं आदमी हूं मेरा यहाँ,
हम वतन कहाँ हैं।
जीना छोड़ दिया हूं,
बुरा नशा समझकर।
कब से मरे पड़ा हूं,
मेरा कफन कहाँ हैं।
स्वारथ की पुड़िया में,
सब कुछ बिकता है।
अधिकार के नाम से,
देखो हनन कहाँ है।
हर शाख उल्लुओं का
बसेरा यहाँ वहाँ है
जलते गुलचमन में
अब अमन कहाँ है।
-एमन दास मानिकपुरी
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