साहिल से कहो कि मझधार ज़िंदा है
कश्ती जो डूबो दे वो पतवार ज़िंदा है
कभी तो बदलना होगा रद्दी किताब को
किसी पन्ने में नकली अधिकार ज़िंदा है
मैं शायर हूं जनाब कोई जंगबाज नहीं
लेकिन अभी तलक तलवार ज़िंदा है
हर डाली ऊल्लूओं का बसेरा है यहां
बनके हकदार कई मक्कार ज़िंदा है
अपने मर रहे थे तो चूप्पी साध ली थी
दुश्मन की आह पे रोने ये गद्दार ज़िंदा है
उठो मां भारती रथ पर बैठ करो प्रहार
हरने तेरा भाग असुरी ललकार ज़िंदा है
- एमन दास मानिकपुरी
anjorcg.blogspot.com
कश्ती जो डूबो दे वो पतवार ज़िंदा है
कभी तो बदलना होगा रद्दी किताब को
किसी पन्ने में नकली अधिकार ज़िंदा है
मैं शायर हूं जनाब कोई जंगबाज नहीं
लेकिन अभी तलक तलवार ज़िंदा है
हर डाली ऊल्लूओं का बसेरा है यहां
बनके हकदार कई मक्कार ज़िंदा है
अपने मर रहे थे तो चूप्पी साध ली थी
दुश्मन की आह पे रोने ये गद्दार ज़िंदा है
उठो मां भारती रथ पर बैठ करो प्रहार
हरने तेरा भाग असुरी ललकार ज़िंदा है
- एमन दास मानिकपुरी
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