हो रे सावन,
छतिया ल मारे बजुर बान।
उमर घुमर बरसे कारिया रे बादर
हिरदे ल करय हलाकान ।। रे सावन।।
पाना पतेवना के भाग हरियाये
घुर घुर माटी के छूटत हे परान।। रे सावन।।
कांदी उगे हस रे कट जाबे एक दिन
हंसिया के धार जीनगी जान।। हो रे सावन।।
एमन दास मानिकपुरी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें