रविवार, 13 अप्रैल 2014

फिर भी,,



मेरे पास कुछ नई है,

फिर भी,
मेरे पास बहुत कुछ है ,
कुछ स्मृतियाँ ही ,
मेरे लिए बहुत कुछ है,

गर्मी की छुट्टी है,
जलती दुपहरी है 
जब मै घर के सामने की,
नीम के  झाड़ के निचे  खेलता रहता,
कुछ दोस्तों के साथ,
फुर्फुन्दी के पीछे भागते रहता,

पतंग के लिए पैसे नहीं तो क्या,
किसी पुराने अख़बार में ,
बांस की डंडी लगा के ,
रस्सी के सहारे बांध देता ,
पतंग आसमान तक नई जाता तो क्या,
मै रस्सी पकड़ के सड़क किनारे दौड़ लगाता ,
मेरे सर के बराबर ही सही ,
पतंग उड़ता तो था ,

खाली सीसी और घर के रद्दी ,
कबाड़ी को बेच आता ,
तो कुछ पैसे माँ मुझे भी दे देती ,
इसे स्कुल के दिनों के लिए,
सम्हाल के रखने के लिए,
वापस माँ को दे देता,

तालाब में भैसों के पीठ पर से,
 कूदने का अपना अलग ही मजा था,
 बसते में रखे टूटी पेंसिल से दुनिया लिखने की ख्वाब देखना ,
सरकती पेंट को सँभालने में स्कूल का सारा समय गुजर जाता ,
समझौते भरी जिंदगी समझ में  आता है ,
पर समझौते भरा बचपन आज भी रुलाता है,

मेरे पास कुछ नई है,
फिर भी,
मेरे पास बहुत कुछ है ,
कुछ स्मृतियाँ ही ,
मेरे लिए बहुत कुछ है,

गीतकार 
एमन दास मानिकपुरी
औंरी, भिलाई —3, दुर्ग
मो.7828953811

चित्र साभार: श्री फागुराम यादव जी

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