बुधवार, 15 जनवरी 2020

आये हैं कहां से और जाना कहां हैं,,,

आये हैं कहां से और जाना कहां हैं।
पता कर पंछी तेरा ठिकाना कहां हैं।।


जहां से उड़ा था वो डाली नहीं हैं।
वो ​बगिया नहीं हैं वो माली नहीं हैं।।
सुना था कभी जो अनहद अनोखी
वो मधुरी वाणी वो तराना कहां हैं।
पता कर पंछी,,,


उड़ता रहा जिस पवन के सहारे।
कोई न जीता सब है इससे हारे।।
तू अकेला चला था अपनी जिद में।
देख जरा मुढ़के किनारा कहां हैं।।
पता कर पंछी,,,


बित गया दिन अब रात हो रही है।
सोचा नहीं था वही बात हो रही है।।
छोड़ आया था जो आनंद की बस्ती।
वो मस्ती का गांव वो घराना कहां हैं।
पता कर पंछी,,,


—एमन दास


आने—जाने का सिलसिला, यूं ही चलते रहेंगे

आने—जाने का सिलसिला, यूं ही चलते रहेंगे।
कभी हम मिलते रहेंगे, कभी बिछड़ते रहेंगे।।

ये जीवन है जिसकी, उसकी रीत पुरानी है।
कभी हम गिरते रहेंगे, कभी संभलते रहेंगे।।

समय की सीमा से, बंधा हर कोई यहां।
कभी हम जलते रहेंगे, कभी बुझते रहेंगे।।

इस सुहाने सफर का, बस मजा लीजिए।
कभी हम रोते रहेंगे, कभी हंसते रहेंगे।।

—एमन दास मानिकपुरी

सोमवार, 6 जनवरी 2020

गजल गैर सियासी

सियासत की बोली में,
वो सयानापन कहाँ हैं।
राजनीति की गली में,
अब अपनापन कहाँ हैं।

न हिंदू हूं न मुसलमां,
न सीख हूं न ईसाई।
मैं आदमी हूं मेरा यहाँ,
हम वतन कहाँ हैं।

जीना छोड़ दिया हूं,
बुरा नशा समझकर।
कब से मरे पड़ा हूं,
मेरा कफन कहाँ हैं।

स्वारथ की पुड़िया में,
सब कुछ बिकता है।
अधिकार के नाम से,
देखो हनन कहाँ है।

हर शाख उल्लुओं का
बसेरा यहाँ  वहाँ है
जलते गुलचमन में
अब अमन कहाँ है।

-एमन दास मानिकपुरी
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