शनिवार, 1 दिसंबर 2018

मनखे तन अमोल रे,,,

दया मया बिन ए जिनगी के,
काहींच नइ हे मोल रे।
दिन दुखी माटी चोला तोर,
मनखे तन अमोल रे।
सुख दुख हे जिनगी के रसता,
ससता झन समझबे।
पाछू परे हे काल निरंजन,
एको दिन अरहजबे।
करम धरम बिन ज्ञान अकारथ,
फोकट झन तोल रे।
दया मया बिन ए जिनगी के,
काहींच नइ हे मोल रे।
मिल उठ गोठियाले बने,
सबो डहर सुछेल्ला हे।
रीस रांढ़ के गोठ बिसार,
जाना फेर अकेल्ला हे।
खाले कमाले बने गोठियाले,
भेद जिया के खोल रे।
दया मया बिन ए जिनगी के,
काहींच नइ हे मोल रे।
बाहर भितर एके बरोबर,
सुमत के जिनगानी।
आंखी देखे सुने कान के,
होही सबे पानी पानी।
जियत भर के बोली भाखा,
बने जतन के बोल रे।
दया मया बिन ए जिनगी के,
काहींच नइ हे मोल रे।
—एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'

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