शनिवार, 1 दिसंबर 2018

ग्यान बिन मनखे, होगे हे गंवार।

ग्यान बिन मनखे, होगे हे गंवार।
जुच्छा जनम सरी जिनगी अंधियार।।
पढ़े लिखे भोकवा, मारत हे फुटानी,
नता—गोता चिन्हें नहीं, करथे हिनमानी।।
काम—बुता ठिकाना नहीं, गिंजरे गली खोर।
दाई—ददा ल चिन्हें नहीं, बनगे रनछोर।।
पहार सहीं जिनगी, धुर्रा म धरदिस।
बबा के खंदैया छिन म गंदा करदिस।
कोख कपूत के कईसे, होथे आनतान।
बाप के मया नई जाने होगे बेईमान।।
पुरवज के मान करव तुहंला बरजत हंव।
जेखर पुनपरताप अमर हे उहंला बंदत हंव।।
—एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'

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