सोमवार, 18 नवंबर 2019

मेरी कलम खामोश हो जाएगी,
मेरे बोल जिंदा रहेंगे।
मैं फिकर क्यों करूं जनाब,
ये भूगोल जिंदा रहेंगे।।

रास्ते बहुत है चलने को मगर,
हम वहीं जाएंगे जहां हमराही हो।
मैं कलम हूँ उस दिशा चलुंगा ,
जहां मेरा पन्ना और मेरा स्याही हो।।

किसी के सहारे कि क्या गरज,
मुझे संस्कृति का साथ मिल गया।
इस परंपरा के गाढ़े रिश्तों से,
बंजर में भी फूल खिल गया।।

मेरी सांसों की हर एक सफर,
तेरे नाम करके जाउंगा।
कुछ ऐसा लिखकर जाउंगा,
कुछ काम करके जाउंगा।।

गीतकार-
एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'
anjorcg.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें