सोमवार, 11 नवंबर 2019

अरकट्टा

दुनिया दुख के मेला रे मोर भाई
पल छिन बिकट झमेला!

धन दोगानी खटिया गोरसी,
जियत भर के साथी।
चोंगी माखुर म बितगे जिनगी,
टोटा म लग गे फांसी।
बीता बर पेट के ख़ातिर,
गजब फिरेव सुछेल्ला रे मोर भाई
पल छिन,,,,,

तिनका जोर महल बनाएंव,
जोरेव पथरा ढेला।
स्वारथ के सूली म चढ़के,
खोजेव सुख के ठेला।
आंखी मुंदे रेंगेव रसता,
बैहा बरोबर अकेल्ला रे मोर भाई
पल छिन,,,,,

जांगर के राहत भर ले,
खूब उड़ाएव गुलछर्रा।
छाती उपर पीरा चढ़गे,
सब धुकय सुपा पर्रा।
तन पिंजरा के मैना उड़ागे,
जाने कहाँ सनकेरहा रे मोर भाई
पल छिन,,,,,

लेखा जोखा ये जिनगी के,
अतके मोर किताब।
सब खैता होना हे एक दिन,
काला रखव हिसाब।
माटी के काया माटी होही
लगे हे रेलम पेला रे मोर भाई
पल छिन,,,,,

गीतकार-एमन दास मानिकपुरी
मो-7828953811

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें