रविवार, 1 सितंबर 2013

'जियरा के कतका बिसात'

(आकाशवाणी रायपुर द्वारा, दिनांक- १८-१२-२०१२ को 'मोर भुइया' कार्यक्रम में प्रसारित )

जियरा के कतका बिसात रे सुवना!

रस भरे जिनगी के रद्दा बंजर काँटा बगरगे!
हरियर हरियर मया के सुरता ताना ठोसरा संघरगे!
पल छीन साँझ बिहान बितत हे,
उही दिन उही रात रे सुवना!

मइके भूल मयारुक अँगना,जिनगी जनम छ्न्दागे!
संग सहेली नोहर होगे, घन अमरैया दुरिहागे!
महाजनम अकारथ भइगे,
पानी पूरा बोहात रे सुवना!       

सोहबत के गोठ नंदागे, मया पिरित नोहरागे!
नवा नवा हिरा के पीरा, छीन भर म जुन्नागे!
सुध बुध मति मोहना बर,
सपना बन तरसात रे सुवना!

रोवत गावत बीत गे जिनगी, सपना जइसन लागे!
जियत मरत करनी करम के, आंखी के आँसू बोहागे!
जिनगी के बेला बसंती भगागे,
अधरे अधर उड़ियात रे सुवना!

जियरा के कतका बिसात रे सुवना?

      
गीतकार- श्री एमन दास मानिकपुरी
सम्पर्क : औरी, भिलाई-3 दुर्ग छत्तीसगढ़ ।
मोबाईल : 78289 53811   

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