रविवार, 27 अक्तूबर 2013

"पिरोहील"

सुनके आई जबे संगी,
जियरा हे बड़ उदास ।।सुनके।।

कारी रे कोइली कुहके आमा डार म।
बगियागे बिधुन परसा खार खार म।
मौरे अमरैया लगथे उचाट।।सुनके।।


कंवला अउ खोखमा के पांखी छतरागे।
तबले नइ आये रे जोही आंखी पतरागे।
भरे तरैया मरत हे पियास ।।सुनके।।

रही रहीके भइगे तोरेच सुरता सतात हे।
हिरदे म हिरे बैरी मन ल तरसात हे।
संसो फिकर मोला दिन रात ।।सुनके।।


गोदना गोदायेंव रे करिया तोर नांव के।
ककनी बनुरिया बिछिया पैरी पांव के।
करधनिया पहुंची फुंदरा लेथे भरमात।।सुनके।।

जुड़ पुरवाही ताना मारे देथे गुरेर।
ठेही मारे पवन झकरो झन कर अबेर।
अइबी बगिया कोसे बिन ​बात ।। सुनके।।


गीतकार- श्री एमन दास मानिकपुरी
सम्पर्क : औरी, भिलाई-3 दुर्ग छत्तीसगढ़ ।
मोबाईल : 78289 53811  

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