शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

'लइका उतियइल'



कच्चा कच्चा आमा लबडेना मार देथे।
बानी लगाये रिथे जादा लाहो लेथे।

कतको बरजबे नई मानय बात।
लइका उतियइल बड़ा बदमाश।

संगी संगवारी संग खेले बनवारी।
बिट्टाय मन मजा लेथे बड़ा भारी।

बिल्होरे रद्दा करे ठट्ठा मनबोधना।
गदराय गाल गोरिया करिया गोदना।

रोम देथे डोंगरी सुन्ना अमरैया मा।
पथरा पिरित पानी पनियर तरैया मा।

कटही बंबूर कांटा सुनता बंधागे।
का बतांव बैरी हिरदे म धंधागे।

कनिहा खोंचे बंसी बइहा बनवारी।
मधुबन के छैला बाबू संगवारी।

जांवर जिंयर राधा रंगरेली रजुवागे।
पाछू पाछू नैना नजर अगूवागे।

मया के लहरा लहरी लहरू।
तोर सही कतको इहां ढोला मारू।

राउत अंटेलहा के नइ मानव बात ल।
जान डारेंव गोई मय करिया के जात ल।

नइये ठिकाना रे भौंरा बांटी जात के ।
पेलिहा परछलहा लाज के न बात के।

फुगड़ी के जात रे भांवर गिंजार लेते।
बने जात जतुवन हांक पार लेते।

सुनता जिनगी मा चलही जिनगानी।
मइके ससुरे के नई होवन दंव हिनमानी।

तिरिया के जात चेतले चितकबरा।
रोई रोई आंसू पी लेहू फेर नई करंव झगरा।

परवस्ती के बाबू ठिकाना तोरेच बैंहा।
एहवांती तोर बर धरम लेतेंव छैंहा।

जीत्ता जिनगी भरके पगला मयारू।
अउ कोनों नइये इंहा गंगा बारू।

बासत बासत नाव तोर जिनगी पहाहू।
झन ठगबे कान्हा अब नई रिसाहू।

- श्री एमन दास मानिकपुरी
सम्पर्क : औरी, भिलाई-3 दुर्ग छत्तीसगढ़ ।
मोबाईल : 78289 5381

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