गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

कारी

हमारा देश भारत दुनिया में अपनी मनीषी परंपरा और भावनात्मक जीवन शैली के साथ साथ दया, धर्म,जैसी धार्मिक विचारो के लिए जाना जाता रहा है, इसी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के हिरदय स्थल पर मानविक भावनावो से धडकता राज्य है हमारा छत्तीसगढ़, जिसे दक्षिण कोशल और न जाने कितने नामो से संबोधित होता आ रहा है ,यहाँ की संस्कृति और परंपरा के बगिए में सुआ, ददरिया ,करमा, पंथी ,नाचा जैसे कितने ही फुल खिले है जिनकी खुसबू देश परदेश में बिखर रही है ,नारी की कोमल भावनावो को तो जैसे छत्तीसगढ़ ने जिया है ,यहाँ की रग़ रग़ में नारी की सुख दुःख का निरंतर अहसाश समाहित है, यही कारन है की यहाँ के लोग समय समय पर इस अनुभूति को प्रत्यक्ष करते रहे है जिसका सशक्त उदाहरण है लोक कला मंच "कारी", कारी नाटक को देखना मानो नारी जीवन को जीने के सामान है , अपने ज़माने के सुविख्यात रंगकर्मी "दाऊ रामचंद देशमुख" की ये कालजई प्रस्तुति कलाकारों के साथ साथ भले ही किसी सुहानी संध्या वेला की तरह बीत चुकी हो किन्तु कारी की वो जिजीविषा, सहिष्णुता, हृदयता और असल में कहू तो नारिता की कोमल भावनाओ का हिरदय स्पर्शी ताशिर आज भी छत्तीसगढ़ के आम नागरिको की हृदयता को दर्शाता है ,"कारी" की सरलता और 'गंभीरता" को समझ पाना कठिन नहीं परन्तु इसका एकाएक विस्वाश और प्रस्तुति का जीवंत शैली छत्तीसगढ़ की धरोहर है , आंशु की कीमत को जानने वाला जिंदगी को बारीकी से जीने वाला ही कारी को समझ सकता है, जीवन की आम संघर्षो और सचाइयो से सराबोर कारी छत्तीसगढ़ की नारी का ही प्रतिक है जिसके गुणों को लिखने की नहीं जीने की जरुरत है ,कारी नाटक के गीतकार दाऊ मुरली चंद्राकर के सानिध्य में मैंने कारी को थोरा ही जान पाया किन्तु इसे मंच के सामने बैठकर न देख पाने की छटपटाह
मेरे मन में जीवन पर्यंत रहेगी......
-एमन दास मानिकपुरी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें