गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

मया के गुमान





बनके चिरैया मन उड़ उड़ जाये रे,
मया के गुमान पिरित पांखी लगाये।

बौछागे बन डोंगर सावन अब आ​ही ,
धरती गगन झुमें गाये पुरवाही।
टिह​की चिरैया टिहके,कोयली कुहकाये रे,
मया के गुमान पिरित पांखी लगाये।

चाल मस्तानी देख नदिया कछार के,
घटा घनघोर मस्ती जंगल पहार के।
इही मस्ती म आज, मिरगिन मस्तीयाय रे,
मया के गुमान पिरित पांखी लगाये।

बिधुन बिछिया ककनी, पहुंची बनुरिया,
सोलहों सिंगार मातें सोलह उमरिया।
छतरंगी चुनर ओढ़े चंदा लजाये रे,
मया के गुमान पिरित पांखी लगाये।

मतहा भौंरा बइहा के ठौर न ठिकाना,
बागे बगैचा पुछे आही कब बताना।
मौरे अमरैया ला काबर तरसाये रे?
मया के गुमान पिरित पांखी लगाये।


गीतकार- श्री एमन दास मानिकपुरी
सम्पर्क : औरी, भिलाई-3 दुर्ग छत्तीसगढ़ ।
मोबाईल : 78289 53811  

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