गुरुवार, 30 जनवरी 2014

'मया फांदा'



जिय लेवा डोंगरी खार भांय भांय लागे,
करिया के सुरता म मनता भरमागे।

सुन्ना गठौंदा के पथरा उदासी हे,
जरथे सुरज संसो बदरी पीयासी हे।

मया के भोंभरा जरय मंझनी मंझना,
तबले जराथे जिय नैना झुले झुलना।

का नरवा तरिया का बखरी बारी,
आरा पारा हुलास मारे सुरता तुतारी।

डबरी के खोखमा ल चिखला सनाथे,
लहुट आ रे करिया कोन तोला भरमाथे।

माया के फांदा कसम कसे छाती,
तबले नई आये लिख लिख हारेंव पाती।

परथे सुनेल अलिन गलिन बैरी
ककनी कलपथे सुसक रोथे पैरी।

गीतकार:
एमन दास मानिकपुरी,
औंरी, भिलाई—3, तह. पाटन, जिला— दुरूग
मो. 7828953811


छाया​चित्र के लिये छत्तीसगढ़ी गीत प्रेमी मयारू फागुराम यादव भैया जी का सादर आभार,,

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