शुक्रवार, 2 मई 2014

'देखे हंव'





चुल्हा म माढ़े अंगाकर रोटी ल जरत देखे हंव,
मय तो आंसू संग म करेजा चुरत देखे हंव।

कठलत हांसी के पांख धरे कभू उड़य अगास म,
उही मन ल मसोच के एक दिन मरत देखे हंव।

हरदी सही कुचरात रहीगे आस बिसवास के डोरी,
ऐसे बंधना मया के भपका बरत देखे हंव।

कसकत आंखी म अतेक बर सपना समोख डारेव,
हस्ती र​हीके काबर परस्ती रहत देखे हंव।

मन धुंका संग पिरित बोहागे ओरवाती के धार,
बिन ओधा झीपार जीनगी बहत देखे हंव।

सग बाप ल नौकर बतैया मतलबिया मनखे,
अउ बखत परे गदहा ल बाप कहत देखे हंव।

देखत देखत आंखी म घन अंधियारी छा गे,
इही अंधियारी ले एक सुरूज उवत देखे हंव।

गीतकार 
एमन दास मानिकपुरी
औंरी, भिलाई 3, दुरूग 
मो. 7828953811

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