सोमवार, 26 मई 2014

'कोलकी'

दिन बादर के बनइया,
सुघर सावन के बरसइया,
बुन्द बुन्द म उही हर समाये हे,
जेन तोला अउ मोला बनाये हे।

पाना पतेवना म उहीच बसे हे,
चंदा अउ सुरूज ल जउन रचे हे।
हवा पानी के एक उही हे विधाता,
जनम जनम जेखरले हमर नाता।
संसा के सुतरी म उहीच गुथाये हे।।बुन्द बुन्द म।।

भोंभरा अउ जाड़ के पगरइती करथे,
लेवत साठ नाम दूख पीरा ल हरथे।
जेखर परसादे हमन जीथन खाथन,
सुत उठके नव नव माथ नवाथन।
बाहिर ठाढ़े हे उहीच भितरी धंधाये हे।।बुन्द बुन्द म।।

अगम लहरा ले बड़े लाहर देखाथे,
बखत परे म हमला सौंहत चेताथे।
समझे के बात ये झन होवव हैरानी,
का बिसात जीनगी के पल भर जवानी।
अंजोर उही उहीच अंधयारी बगराये हे।।बुन्द बुन्द म।।

चाल के चलवंता तोरो नई चलय,
ओखर आगू म ककरो नई गलय।
कतको उदिम करले बोचक नइ पाबे,
दूसर बर खांचा खनबे तही भोसाबे।
बड़े बड़े शूरमा अइसने मुंहके खाये हे।।बुन्द बुन्द म।।

जग जंवारा मया चिटिक मीठ बोल,
खाले कमाले जीनगी जीले अनमोल।
करले बंदगी धरले नरियर सुपारी,
एक न एकदिन आही हमरो पारी।
पिछोत के रद्दा सतगुरू बताये हे।। बुन्द बुन्द म।।

गीतकार
एमन दास मानिकपुरी 
औंरी, भिलाई 3, दुरूग।
मो. 7828953811


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