शनिवार, 3 मई 2014

'लगुन लहरा'


दरस बिन बैहा रे,
तरसे मोर नैना रे,
आस के सावन घुमरे अंतस म घनघोर।
बनके बदरी बरसजा तय आजा धनी मोर।

अमरैया म डेरा डारे,
कारी जउंहर खोपा पारे,
पाना पतेवना अस अपन तन ल झन टोर।
मय आहूं बेरा टार के संगी थोरकन अगोर।

दाउ परचंडा अभी गे हवय खार म,
माई मुसहा मंडल घुमथे कछार म।
दोगला मन टुकुर देखत रहिथै रनछोर।
बनके बदरी बरसजा तय आजा धनी मोर।

पीरा ल मनके तोर जान डारे हंव,
भरे पिरित जउंरिया पहिचान डारे हंव।
सुध सवांगा साधे जोहत रहिबे रद्दा मोर।
मय आहूं बेरा टार के संगी थोरकन अगोर।

सुरर सुरर पुरवाही,
पवन हिंडोलना।
हांसी ठ्टठा म झन,
होबे अनबोलना।
नरवा के पानी,
दिखथे फरिहर।
झुंझकुर मयारूक,
बदेहंव नरियर।
मंगनी मया के,
संगवारी चिन्हौर।
बारके दिया,
सोंपा लेतेंन मौर।
बइला गाड़ी म चढ़के,
सज अउ संवर के,
धरके ब​रतिया तंय आ जाबे रे दोस,,,

अलिन गलिन म,
तोरेच चरचा।
लिख लिख भेजेंव,
मया म परचा।
मइके ससुरे के,
झन हो हिनमान।
अतकेच गठियाले,
खवाहूं बीरो पान।
जीनगी जनम के,
हमर नाता।
मोरेच बर तोला,
गढ़े विधाता।
बइला गाड़ी म चढ़के,
सज अउ संवर के,
धरके बरतिया मंय आ जाहूं रे दोस,,,

गीतकार
एमन दास मानिकपुरी
औंरी, भिलाई 3, दुरूग।
मो.7828953811





















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