शनिवार, 5 दिसंबर 2015

'गीत गंगा'

आरा—पारा खोज परेंव, खोजेंव बखरी बारी।
परछी परछो लेहेंव, आरो अंगना दूवारी।।
हांका पार के कहत हंव गउंकी संगवारी,
मनखे सिरागे का का का?
मनखे सिरागे का?

रांव रांव सबो कोतिल, रांव रांव दिखथे।
खांव खांव सबो डहर ले, खांव खांव दिखथे।।
बिगड़े ईमान बाड़गे अइताचारी,
हकदार सिरागे इहां, होवथे हिस्सादारी,
हांका पार के कहत हंव गउकी संगवारी।

भसकगे हे परदा येद, कोन ओइलत हे।
सेर तराजू बिन बाट, लहू तउलत हे।
पर ल काला कहिबे, घर म होवथे झिंकातानी,
हांका पार के कहत हंव गउकी संगवारी।


यहा अंकाल ये साल, करजा कब छुटाही।
खेती भरोसा जीनगी, भलुक कइसे पहाही।
चिंता फिकर छागे, मारथे तुतारी,
हांका पार के कहत हंव सुनतो संगवारी।

अइसे बिगड़े हाल म, चाल ल जतन लेतेन।
चल दूनों परानी गउ, उही ल सुमर लेतेन।
अउ नै मिलै माउका, हवय ठउका करारी,
हांका पार के कहत हंव सुन लेते संगवारी।

गीतकार
एमन दास मानिकपुरी
औंरी, भिलाई 3 तहसील—पाटन
जिला—दुरूग
मो.7828953811

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें