शनिवार, 5 मई 2018

शहर कोई दूसरा बसाना पड़ेगा!

शहर कोई दूसरा बसाना पड़ेगा!

बहुंत फैला है जहर, यहां से जाना पड़ेगा।
लगता है शहर कोई दूसरा बसाना पड़ेगा।।

पहले जैसी भूख अब लगती कहां है।
दिखाने के लिए कुछ तो खाना पड़ेगा।।

ऐसे ही बात अब कहां बनती है।
थोड़ा आरजू दिल में जगाना पड़ेगा।।

हर मोड़ हर सड़क भीड़ में भी सुने है।
वक्त रहते खुद को सम्भल जाना पड़ेगा।।

गांव की यादें सिमट न जाये कहीं।
ठिक ही है लौट कर जाना पड़ेगा।।

—एमन दास




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