शनिवार, 1 दिसंबर 2018

संसो बहुंत हे!

संसो बहुंत हे!
कईसे बिगड़ी ल बनाबो,
कईसे जिनगी ल जगाबो।
कईसे जांगर ल चलाबो,
कईसे खाबो अउ कमाबो।
संसो बहुंत हे!
कईसे भेदभाव ल मिटाबो,
कईसे जुरमिल के गाबो।
कईसे सुख ल बिसाबो,
कईसे हांसबो अउ हंसाबो।
संसो बहुंत हे!
कईसे खेती ल बचाबो,
कईसे गांव ल सजाबो।
कईसे दुख ल बताबो,
कईसे गाना ल गाबो।
संसो बहुंत हे!
—एमन दास मानिकपुरी

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