बुधवार, 20 नवंबर 2019

गजल
(रचना दिनांक 03-09-2011)

कोई अपनी जिन्दगी, गजल किये बैठे हैं।
जाम -ए-मुहब्बत,  मुददत से पिए बैठे हैं।।

गर किनारा  मिले तो,  साहिल से  कहना।
मुसाफिर कोई बरसों से, कश्ती लिए बैठे हैं।।

ये सफर-ए-इश्क का, अंदाज-ए-बयाँ सुनो।
वो भूल गए जिनकी, यादो में जिए बैठे हैं।।

लाख  मन्नतो पर भी, वो दिल  दे न पाये।
बिन मांगे  कोई यहाँ, जान  दिए  बैठे हैं।।

उस रात  चाँद  की,  रौशनी  क्या  पढ़ी।
बहार-ए-चमन  में,  गुल  खिले  बैठे  हैं।।

-एमन दास मानिकपुरी
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