बुधवार, 20 नवंबर 2019

'रंगरेली' गीतकार -एमन दास मानिकपुरी

'रंगरेली'

लपकत हे चाल तोर,
लचकत  हे  कनिहा।
होवथे बवाल गोरी,
ते काबर आय पनिया।

गजब हालै डोलै बैहा,
तोर बेनी झुलै झूलना।
खनखन चुरी बाजे,
जियलेवा होगे कंगना।

फकफक ले गोरी के,
चकचक ले हे गोदना।
कोन भागमानी बर,
बदे हवस ते बदना।

जौंजर मोटियारी के,
जबर जौंहर जवानी।
कुंदरू कस होठ हे,
चुरपुर गुरतुर बानी।

आंखी गढ़ौना गत,
नैना हवय कटारी।
रसरसहा रूप रंग,
हिरदे म चले आरी।

दूरिहा ले देखे म,
धक धक ले करथे।
लकठा म आये ले,
चट चट ले जरथे।

आस धरे हिरदे के,
सइता ल डोलाथे।
ओतको म लजा के,
मइनता ल भरमाथे।

गीतकार-
एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'
anjorcg.blogspot.com


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