गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

गजल

साहिल से कहो कि मझधार ज़िंदा है
कश्ती जो डूबो दे वो पतवार ज़िंदा है

कभी तो बदलना होगा रद्दी किताब को
किसी पन्ने में नकली अधिकार ज़िंदा है

मैं शायर हूं जनाब कोई जंगबाज नहीं
लेकिन अभी तलक तलवार ज़िंदा है

हर डाली ऊल्लूओं का बसेरा है यहां
बनके हकदार कई मक्कार ज़िंदा है

अपने मर रहे थे तो चूप्पी साध ली थी
दुश्मन की आह पे रोने ये गद्दार ज़िंदा है

उठो मां भारती रथ पर बैठ करो प्रहार
हरने तेरा भाग असुरी ललकार ज़िंदा है

- एमन दास मानिकपुरी
anjorcg.blogspot.com

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