मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

सड़क और जंगल

सड़क सिंगार है शहर का
लंबी चौड़ी चमचमाती सड़क
जंगल के लिए तो नरक
भूखी प्यासी तमतमाती नरक

सड़क शहर से नरक बनकर
मुड़ रहा है जंगल की ओर
राक्षसी सड़कें घूर रही है
पहाड़ का सीना चीरने
और डोंगर से भीड़ने

अंग्रेजों ने भी बिछा  दी थी
रेल की सड़कें
सुविधा देने नहीं
स्वारथ ढोने के लिए
और लाद ले गए थे
अमूल्य खजाने

अब पहले से भी ज्यादा
खूंखार हो चुकी है सड़कें
उसकी लाल आंखें
ओधते सुंघते बढ़ते
बीहड़ को रौंदते
झुण्ड की झुण्ड सड़कें
लीलने वाली है आदिम संस्कृति
चगलने वाली है पुरातन परंपरा
चूस लेगी प्राचीन सभ्यता

सहम रहा है महुआ
डर रहा है साल सागौन
घबरा रहा है बीजा और तेंदू
कैसे बचेंगे अब
ददरिया की तान
करमा की ताल
माढ़ में सुरहुल
बासी, कांदा और
अनगिनत गीत

-एमन दास मानिकपुरी
 anjorcg.blogspot.com





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें