मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

भौंरे भी लगे कांपने

ऐ बावले बसंत!

आना था मधुमास लेकर
बारिश लेकर आ गये
भौंरे भी लगे कांपने
क्यों कलियों को तरसा गये

परसा फूल खार म
बिकट लजाए हे
जीभर के सेमर ह
समरे नइ पाए हे

अरसी सरसो तिवरा चना
 चनवारी म मताए हे
बदरी बदमाश गजब
बिल्होरे बर आए हे

मौसम बसंती में
बेमौसम फुहार देखो
तन की तपन में
भीगे मन की बहार देखो

वासंती झोखें में
ये कैसी ठिठूरन हैं
बागो में बहती
अजब सी सिहरन हैं

पयडगरी पुछत हे
पौठा डहर चुप
बगरे बसंत तय
आजा कलेचुप

—एमन दास मानिकपुरी









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