बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

हरहा मरहा मन जिय के थेभा
इही धरती म पाइन रे
इही धरती म आ के सबो हा
अपन परान बचाइन रे

उही कोरा ल कोंवर जान के
आज देख तो रौंदत हे
हमरे संग म रहिके हमरे
अंगना बारी ल गौंदत हे

परदेशिया गोल्लर मन इहां
आ आके सकलावत हे
कोलिहा कुकुर सहीं खा के
अपने अपन बकलावत हे

जौन ल इहां मिलीस मया जी
तौने आज मस्तियावत हे
आ के सरग सहीं भुइंया म
खा खा अटियावत हे

उही धरमी धरती आज अपन
अस्मिता बर गुनत हे
कोनो पूत मोर दरद पीरा अउ
कलपना ल सुनत हे

उही मन एक दिन निकलही रे
घर घर बाना ल धर के
छाती ल चिरही लहू पीही रे
बैरी उपर चढ़ चढ़ के

आज के चिंगारी काली देखबे
दावां सही भभकही रे
बघवा पीला कभू तो उठके
चपकही हबकही रे







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