शुक्रवार, 20 जून 2014

'मया के चक्कर'


काला बतांव कइसे जियके काल होगे रे,
येद मया के चक्कर म बाराहाल होगे रे।

जनम झन गंवाए कहिेके,
धरम म धियान लगाएंव।
घन मोटियारी आसा मन म,
अटल सोहागिन पाएंव।
मड़वा के पिंयर हरदी पानी लाल होेगे रे,
येद मया के चक्कर म बाराहाल होगे रे।

अंतस म पीरा समागे,
हीरा बासत बासत।
अबिरथा जिनगी बिरथा होगे,
येद रोवत गावत हांसत।
मिठ बोली सतवंतिन के सवाल होगे रे,
येद मया के चक्कर म बारहाल होगे रे।

घर कुरिया परवा छानी,
का धरती आकाशा।
का बहिरासू म हारेंव,
जाने कोन जनम के पासा।
बिच्छल जवानी केे बिच्छल चाल होगे रे,
येद मया के चक्कर म बाराहाल होगे रे।

आंधी बड़ोरा मन ह होगे,
उड़ उड़ ठगे दिन राती।
चंदा सुरूज के हाही समागे,
सुरता जरय बिन तेल बाती।
तुलसी के चौंरा दियना जंजाल होगे रे,
येद मया के चक्कर म बाराहाल होगे रे।

गीतकार 
एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'
औंरी, भिलाई 3, जिला दुरूग।
मो.7828953811

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