मंगलवार, 26 नवंबर 2019

विकास नाम की 'सुरसा'

विकास नाम की सुरसा
लील रही है संस्कृति
चगल रही है परंपरा
गटक रही जीवनज्योति

पूंजीवादी रागरहितता
अक्षौहिणि सेना जिनके
अकिंचिन घरौंदे हारी
नन्हें सुख के तिनके

आधुनिकता की बिहड़
में दहाड़ती कौंध रही
रमणीय दारूण सौंदर्यता
पग पग में रौंद रही


शांत शीतल हरीतिमा
सांप्रतिक युग में कहां
निरखता और आकुलता 
भौतिक सुख में कहां

—एमन दास मानिकपुरी

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