सोमवार, 2 दिसंबर 2019

कबीर की धुन में झुमता गाता थिरकता पनिका समाज

मानिकपुरी पनिका समाज का इतिहास अत्यंत समृद्ध एवं गौरवशाली है। सत्य स्वरूपी कबीर, कबीर स्वरूपी वंशगुरूओं का आशीर्वाद और महान कबीरपंथ की अध्यात्मिक धुरी पर टिका यह समाज अपने ऐतिहासिक सफर में सिर्फ और सिर्फ कबीरमय रहा है। कबीरमय संस्कृति, कबीरमय परंपरा, कबीरमय रहनी-गहनी कबीरमय खान-पान इत्यादि इत्यादि। कबीर का सिद्धांत मानिकपुरी समाज के रग—रग में लहू की तरह समाहित है। मानिकपुरी समाज संसार के कोने—कोने में फैला अपनी विरासत की अनमोल आकुल ​छवियों को जीवन की असल जीवटता बनकर फैला रहा है। शहरो में नौकरी कहीं व्यपार करता कहीं कहीं चाकरी करता, गांवों में खेती करता थिरकता कबीर की धुन में झुमता गाता अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ रहा है। समाजिक जिजिविशा को अपने भीतर समेटे सहजता को अंतर्निहित कर कबीरपंथ की बांह थामें अपने स्वर्णिम पल को उजागर कर रहा है। कबीर की भीतर तक उतरने वाली वाणी के सहारे पग—पग बड़ रहा है। पनिका समाज की औचित्य कबीर से प्रारंभ होकर कबीर तक जाती है और से मिलकर कबीर में ही समाती है।झुकती है तो कबीर के लिए ठहरती है तो कबीर के लिए चलती है तो कबीर के लिए गिरती है तो कबीर के लिए कबीर से चलकर कबीर तक पहुंचना इसकी ध्येय है।
किंतु समाज की इस सुसांस्कृतिक अलौकिकता समय के साथ साथ शनै—शनै लोलुप होती प्रतीत हो रही है। लोकलाज विछोही आधुनिकता ने हमारे अमूल्य निधि सुसंस्कार को हमसे छिनने का प्रयास किया है। पूर्वजों की अखंड धरोहर को तार—तार करने की कोशिश की है। हमारी अस्मिता और स्वाभिमान को गटकने की चेष्टा किया है। मानिकपुरी समाज कभी पोखर की तरह ठहरा नहीं अपितु नदी की तरह सतत् गतिमान रहा है। कबीर के पीछे चला ही नहीं अपितु भागा है दौड़ा है और ऐसा उभरा की कबीरपन ही इसका परिचय बन गया। 
वर्तमान में इस समाज के वि​कास और उन्न्यन के लिए विभिन्न स्तरों पर समाजिक संगठन कार्य कर रहे हैं। उनकी स​क्रियता और विभिन्न समाजिक आयोजन समाज के प्रति जागरूकता का परिचायक है। किंतु क्या समाज के विकास के लिए सिर्फ समाजिक पदाधिकारियों का क्रिया​शील होना भर काफी है, क्या आम स्वजातियगणों का कोई दायित्व नहीं बनता? ये प्रश्न कौंधता है क्योंकि पूंजीगत समाजवादिता आमजनों के ​हृदयपटल पर हावी हो रही है जो कि किसी भी समाज के विकास के लिए बड़ी बाधा है। किसी भी समाज का विकास उसकी सभ्यता पर टिका होता है। कबीरत्व मानिकपुरी समाज की गहन विशेषता रही है और इसके पहिचान की पहली शर्त भी।
कबीर साहेब, मानिकपुरी का साध्य और कबीरपंथ पावन साधन रहा है-
एक साधे सब सधे,
सब साधे सब जाय! ।कबीर।।
कबीर की महत्ता अपरिमेय है जिसे हमारे पूर्वजों ने बड़े सम्मान और गौरव के साथ पनिका समाज का परिचायक बनाया और हृदय से अपनाया है । वर्तमान में दिगर समाज की देखा देखी टुटपुंजिया संस्कृति और अनदेखनी हिमाकत ने मानिकपुरी समाज के बहुमूल्य रीति को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जहाँ एक ओर कबीरपंथ की आध्यात्मिक ग्रंथ पनिका की पावनता को पुरजोश के साथ कबीर साहेब के साथ जोड़कर सामने लाती है वहीं तथाकथित पनिका इस समाज में जन्म लेकर पनिका से संबोधित तो होते हैं लेकिन क्या पनिका का असल परियाय बनने के काबिल हैं, क्या पनिका महज एक जाति समुदाय भर है? नहीं मेरे भाई पनिका कबीर साहेब की वो महान विरासत है जिसके बारे में जानने समझने के लिए पहले कबीर को जानना झमझना होगा।
आज जब मैं स्वयं इस दिशा में तनिक विचार भर करता हूँ तो मन भीतर से विचलित होने लगता है क्या थे पनिका और क्या हो रहे  हैं-
अवगुण कहूं शराब का, ज्ञान वान सुन लेय।
मानुष से पशुआ करे, ये द्रव्य गांठ का लेय।। ।कबीर।।
हम किसी और को नहीं कहते किंतु अपने और अपने परिवार को इस अंधकार में जाने से रोक सकते हैं आज चारो तरफ शराब और मांस की कूसंस्कृति का बोल बाला पुरजोर तरिके से बढ़ रहा है। हमें अपने समाज को इस गर्त में जाने से रोकना होगा। 
कबीर को पढ़ना कबीर को समझना आज हर किसी की प्राथमिकता होनी चहिए, आज का परिवेश फैशन का परिवेश है जिसमें शराब और मांस तथाकथित बड़े लोगों की शोभा और कृति का सुलभ साधन बनता जा रहा है।

अंकुर भखे सो मानवा, मांस भखे सो स्वान।
जीव बधे सो काल है, प्रत्यक्ष राक्षस जान।। ।कबीर।।
कबीर साहेब ने अपनी वाणी से हमें जीवन जीने का सहीं रास्ता दिखा गए हैं जरुरत है तो उस ओर निहारने की और आगे बढ़ने की!  बिगड़ने के लिए क्षण भर बहुंत है किंतु संभलने के लिए जनम बित जाता है अब न समझे तो कब!
अकेला स्वयं भर को संभाल कर स्वयं भर के विकास से पूरे समाज को विकसित कर सकते हैं।

- एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'
anjorcg.blogspot.com




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