गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

हिन्दी—छत्तीसगढ़ी गलबैहां

फटे सने कपड़े से
बदन को छुपाता
पैरों पर गिरता,
फिर गिड़गिड़ाता।

मोर जिनगी ल,
गिरवी रख ले साहेब!

फेर एक​ठिन नौकरी दे दे
मैं खोरवा लुलवा घिलर के
तोर दुवारी तक आय हव
दाई ल बिसवास देवाय हव

बिन बाप के मोला
वोहा लटपट म पाले हे
दु:ख पीरा ल साहत
सरी जिनगी ल घाले हे

गरीबी सन लड़त मरत
अब वोहा तो बुड़हा गे
ओकर मुढ़ी के बोझा
मोर मुढ़ी म कुड़हा गे

मोर ​बीमार दाई के
इलाज कोन करही
मोर जवान बहिनी के
बिहाव कोन करही

घर कुरिया के ठिकाना नैहे
बरतन भाड़ा बेचागे
घेरी बेरी के अवइ जवइ
कागज पाथा म सिरागे

अ ब्ब बे, साहब के
गोड़ ल छोड़
वरदीधारी के ललकार
साहेब के पहरेदार

क्या तमाशा लगाए हो
चलो जाओ यहां से
रक्षक बनी भक्षक
बंगले के बाहर पटका

उसका फटाहाल देख
किसी ने दान दिया फेक
निराश मन में आश जागा
भुखा था खाने को भागा





कोई नहीं सहारा,
दुखियारा
फिर हारा,
बेचारा







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