शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

कलमनाद

ऐ कलम की तुक
तू खामोश मत होना
नयी नवेली पगलायी
परंपरा को मत ढोना

रचना, पूरखों की प्रखरता
गढ़ना, गीत गाँव के लिए
जल जंगल और  जमीन
लड़ना तू भी छांव के लिए

तेरे शब्द और हलन्त
अरण में बिखरी पड़ी है
जोतने हल लाल लाल
अनगिनत आंखे गड़ी है

तू पाट देना नींव सब
अवैध गहरी खनन को
और रोक देना कागज पे
स्वयं के हरन हनन को

देखना मौहा टपक कर
कहीं बिखरने न पाये
तेंदू के सूखे पत्ते वहीं
पड़े पड़े टूटने न पाये

तू जतन लेना कांदे और
लाख की बीजों को
मत देना कटने कहीं भी
अपनी सी चीजों को

करुण दर्द कौशल का
दिल्ली को बताना
बस्तर के बिहड़ में
फिर से घोटूल सजाना

तू गूण्डाधूर की वीरकथन
सतत लिखते रहना
जुझते माढ़ की पीरवरन
माटी पे मिटते रहना

-एमन दास मानिकपुरी
anjorcg.blogspot.com

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