रविवार, 8 दिसंबर 2019

पूसमासी भोर

चिकने लंबे पतले कौहे की डाली
कोसा किड़ा ने वहीं घर बना ली

खेतो में खट्टे मीठे बेर पक रहे
बदमाश गिल्हरी खा—खा छक रहे

गुनगुने धुप की चादर मखमली
ठंडी हवाओं में हर्षित हर कली

बून्द बून्द मधुरस मजे से टपकी
झूंड झूंड हिरणी लजा के चौंकी 

दूर पहाड़ो में बिखरी सूरज की लाली 
ये किसने माथे पे बिंदिया लगा ली 

खेतों में महकी धनिया की खेती 
मेंड़ो में अरहर मधुर मुस्कान देती 

साफ छलछल पानी की बहती धारें 
सरसों चने गेहूं की लंबी लंबी कतारें

मतवारी बंजर में छाई हरियाली 
बहकी बहकी सी लगे पुरवाही 

कंटिली झाड़ी में भी सुन्दरता छाई
ओस की बूंदो ने  उसे गजब सजाई

मदमाती रंगरूप नदी ताल तलैया 
मोहे डोंगर की आभा लेती बलैया 

ललचाया मन बहुत बनके चकोर 
मर मर जाऊं तो पे पूसमासी भोर 

-एमन दास 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें