सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

है कौन क्षितिज के पार

रोज सुबह कदम कदम
चल पड़ती है जिंदगी
जाने कैसी तलाश है
है जाने कैसी प्यास

कुछ पाने का हर्ष नया
कुछ खोने का है विषाद
कहीं कहीं पर हारा है
है कहीं कहीं आबाद

सपना ही तो लगता है
सब क्षण भर का एहसास
जो कल उसके पास था
वो आज है इसके पास

कई चेहरे हंसते हैं यहाँ
कई चेहरे हैं बहुत उदास
कई अभी मालिक बना
कई सदियों से हैं दास

रोज नया निर्माण यहां
है रोज नया विनाश
मन के कोने कोने में
उठती मिटती है आस

हरदम नव संघर्ष यहां
है नया नया विश्वास
चला चली की बेला में
कौन है किसके पास

कौन हाथ धरा बंधी है
है टंगी गगन कौन तार
ये कौन उगाता सूरज है
है कौन क्षितिज के पार

-एमन दास मानिकपुरी
anjorcg.blogspot.com
चित्र साभार - इंटरनेट


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