सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

हो रे फागुन - कवि एमन दास मानिकपुरी

तोर मया मोहना मोर नोहर भईगे
एसो के फागुन ह या जहर भईगे 

सांस के दिया जरे आस के बाती म 
अईसने जरत बरत बैरी बरस भईगे 

का घर बन अंगना का पंछी दूवारी 
बिजराथे बैमान सुरता बजर भईगे 

बिकट लाहो लेथे परसा के फुल 
गजब गरू गऊकी ये नजर भईगे 

खार डोगरी नरवा तरिया ताना देथे 
करू कछार गांव बस्ती डहर भईगे 

फागुन के लाली रंग गुलाली नै हे
लोखन पिरित के पीरा पहर भईगे 
anjorcg.blogspot.com
चित्र: साभार इंटरनेट 







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